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सोमवार, 10 फ़रवरी 2014

लेखिका कविता वर्मा जी की कहानियों काप्रथम कहानी संग्रह "परछाइयों के उजाले" ( एक समीक्षा )

    लेखिका कविता वर्मा जी की कहानियों की मैं बहुत प्रशंशक हूँ। सबसे पहले मैंने उनकी लिखी कहानी वनिता पत्रिका में पढ़ी। मुझे बहुत पसंद आई। कहानी का नाम था " परछाइयों के उजाले " !
     जब मुझे मालूम हुआ कि उनका प्रथम कहानी संग्रह "परछाइयों के उजाले" के नाम से प्रकाशित हुआ है तो मुझे बहुत ख़ुशी हुई। मैंने कविता जी से यह संग्रह भिजवाने का आग्रह किया। अभी कुछ दिन हुए मुझे यह मिला।
   कविता जी कि लेखनी में एक जादू जैसा कुछ तो है जो कि पाठक को बांध देता है कि आगे क्या हुआ। लेखन शैली इतनी उम्दा है कि जैसे पात्र आँखों के सामने ही हों और घटनाएं हमारे सामने ही घटित हो रही हो।
 बारह कहानियों का यह संग्रह सकारात्मकता का सन्देश देता है। इनके प्रमुख पात्र नारियां है। नारी मनोविज्ञान को उभारती बेहद उम्दा कहानियाँ मुझे बहुत पसंद आया। मेरी सबसे पसंद कि कहानियों में है ,' जीवट ' , 'सगा सौतेला ',  'निश्चय ',' आवरण ' और 'परछाइयों के उजाले '। बाकी सभी कहानियां भी बहुत  अच्छी है।
   " जीवट " में फुलवा को जब तक यह अहसास नहीं हो जाता कि सभी सहारे झूठे है , तब तक वह खुद को कमजोर ही समझती है। कोई भी इंसान किसी के सहारे कब तक जी सकता है।
     " सगा सौतेला " जायदाद के लिए झगड़ते बेटों को देख कर भाई को अपने सौतेले भाई का त्याग द्रवित कर जाता है लेकिन जब तक समय निकल जाता है। यहाँ यह भी सबक है कि कोई किसी का हिस्सा हड़प कर सुखी नहीं रह सकता। पढ़ते - पढ़ते आँखे नम हो गई।
      " निश्चय " कहानी भी अपने आप में अनूठी है। यहाँ एक मालकिन का स्वार्थ उभर कर आता है कि किस प्रकार वह अपने घर में काम करने वाली का उजड़ता घर बसने के बजाय उजड़ देती है। एक माँ को बेटे से अलग कर देती है। जब मंगला को सच्चाई मालूम होती है तो उसका निश्चय उसे अपने घर की तरफ ले चलता है।
      " आवरण " कहानी भी भी बहुत सशक्त है। यहाँ समाज के आवरण में छुपे घिनौने  चेहरे दर्शाये है। लेकिन यह भी स्पष्ट है कि एक औरत का कोई भी नहीं होता है। उसे अपने उत्थान और सम्मान के लिए पहला कदम खुद को ही उठाना पड़ता है और आवाज़ भी । तब ही उसके साथ दूसरे खड़े होते हैं। यहाँ भी सुकुमा के साथ यही हुआ। अगर वह आवाज़ नहीं उठाती तो वह अपने जेठ के कुत्सित इरादों कि शिकार हो जाती। औरत का आत्म बल बढ़ाती यह कहानी बहुत उम्दा है।
      " परछाइयों के उजाले " एक अलग सी और अनूठी कहानी है। कहानी में भावनाओं के उतार चढाव में पाठक कहीं खो जाता है। यहाँ भी पढ़ते -पढ़ते आँखे नम हो जाती है। इस कहानी के अंत की ये पंक्तियाँ मन को छू जाती है , " नारी का जीवन हर उम्र में सामाजिक बंधनो से बंधा होता है जो कि उसकी किसी भी मासूम ख्वाहिश को पाने में आड़े आता है। "
     कविता जी की सभी कहानियाँ बहुत अच्छी है। मेरी तरह से उनको हार्दिक बधाई और ढेर सारी  शुभकामनाएं कि उनके और भी बहुत सारे कहानी संग्रह आएं।
   मैं कोई समीक्षक नहीं हूँ बल्कि एक प्रसंशक हूँ कविता जी कि कहानियों की।

    परछाइयों के उजाले …… इस लिंक पर क्लिक कर के खरीदी जा सकती है यह पुस्तक।
   

3 टिप्‍पणियां:

  1. उपासनाजी आपने जिस तरह डूब कर कहानियों को पढ़ा और उनका सूक्ष्म विश्लेषण किया बहुत अच्छा लगा। आपका ये प्रोत्साहन मुझे आगे और लिखने की प्रेरणा देगा। ऽअप्क बहुत बहुत आभार।

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  2. upasana ji 24 feb tak book ki booking par 20% ki chhoot hai book 120/ ki hogi postal charges sahit ..
    book ke liye kvtverma27@gmail.com par mail kare ...

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  3. उम्दा समीक्षा ..... कविता जी को हार्दिक बधाई

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